Meri Do Betiyaan Hain (Short Story) In Hindi:
Afsana- Short Story
The meaning of Afsana meaning story in Urdu : افسانہ, and derived from the Persian word Afsaneh:
Meri Do Betiyaan Hain
Hindi:
मेरी दो बेटियां हैं
मुझे लगता है कि मैं अपनी बड़ी बेटी से छोटी कीस्बत ज्यादा प्यार करता हूं। लेकिन जिस तरह से मैं दूर रहते हुए बीवी से बच्चों की खैरियत दरियाफ्त करते वक्त पहले मैं बड़ी बेटी के बारे में पुछता हूं। और बाद में छोटी बेटी के बारे में, इससे मेरी पत्नी ने भी दरज बाला अंदाज़ा लगाया है।लेकिन अजीब बात ये है के बच्चों के लिए शॉपिंग करते वक्त मैं हमेशा छोटी बेटी के लिए पहले खरीदारी करता हूं। और बड़ी बेटी के लिए बाद में। और इसकी वजह बड़ी दिलचस्प है। कल रात ये वजह दरियाफ्त करने में मुझे कामयाबी हुई है। कल रात जब मैं सफर से घर लौट तो बच्चे मेरा इंतजार करते सो गए थे। कल सात बजे जब एक बाद एक मेरी दोनो बेटीयां जागी तो, तो बड़ी वाली खामोशी से मेरे पास आकर लेट गई और छोटी वाली जागते ही सबसे पहले मेरे बैग की जानिब दौड़ लगाई और सब चेक किया के मैं उसके लिए क्या लाया हूं। सब चेक कर लेने के बाद वो मेरे पास आई, मुझे उन दोनो के अमल से खुदा और बंदों के दरमियान रिश्ते को एक नए जावे से देखने का मौका मिला। कुछ खुदा के बंदे खुदा को बहुत महबूब होते हैं। लेकिन बंदों का अपना एक मिजाज़ होता है, वो इबादत करते हैं। , मोहब्बत का इज़हार करते हैं, अल्बाता वो मांगते नहीं हैं। अपनी ज़रुरियत के लिए शोर नहीं करते, ज़िद नहीं करते, और हक नहीं जाते। बिलकुल मेरी बड़ी बेटी की तरह। जबके कुछ लोग हक जाता कर, मिन्नत करके, शोर डाल कर खुदा से कह रहे होते हैं के मुझे ये चाहिए वो चाहिए, और ये लोग हासिल ना होने पर रूठते हैं। और रोते हैं और ज़िद भी करते हैं। जैसी मेरी छोटी बेटी करती है, तो आगर मैं अपनी छोटी बेटी की इस तबियत की वजह से हमेशा शॉपिंग में उससे पहले याद रखता हूं तो मुझे याक़ीन है की खुदा भी खुद से मांगने वालों को, अपना हक जताने वालों को, और ज़िद करने वालों को खुसूसी तोर पे नवाजता होगा.मैंने सोच लिया है के आज के बाद मैं खुदा से वैसा ही रिश्ता रखूंगा जैसा मेरी छोटी बेटी का मुझसे है, मैं जनता हूं, खुदा मेरी तामाम जरूरियत से वाकिफ है जैसे मैं अपनी बड़ी बेटी से वकिफ हूं। मैं सिर्फ उसकी ज़रुरियत का ही ख़याल रखता हूँ।उसकी ख़्वाहिशत जो वो ज़िद करके हासिल कर सकती है, उससे वो महरूम ही रह जाती है, मैंने छोटी बेटी के अमल से सीखा है के महरूमी से कैसे बचा जा सकता है, आज के बाद नमाज़ खतम होते ही आप मुझे जल्दी जल्दी भागे सफ चीरते बाहर जाते नहीं देखेंगे, जितना वक्त नमाज में लगा है कमसे कम उतना वक्त तो मैं फरमाइशी लिस्ट खुदा के सामने ज़िद करके बयान करुंगा, मैं अपनी बेटी के इस मिजाज़ का ख्याल करके उसे खुसूसी अहमियत देता हूं तो खुदा मेरा मुझे खुसूसी अहमियत क्यों नहीं देगा जबके बेशक वो मुझे इससे कहीं ज़्यादा मोहब्बत करता है जो मुझे अपनी बेटी से है..
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